Tuesday, 24 January 2017

क्यों बेगाना सा करती हों

तेरे लिए बैठें है अपना मुख मोड़ के
तेरे लिए बैठे है सबसे नाता तोड़ के
क्या हुई खता ऐसी मुझसे
तुम रूठ गए खुदसे जैसे
गलती तो होती रहती है
क्यों तोड़ती हो इन रिश्तों को                              
कोई कमी बताके तुम मुझमें
न जाने
क्यों बेगाना सा करती हों
जब आँसू तेरे आते थे
तब आँसू मेरे  गिरते थे
न रोने दिया कभी तन्हा तुझे
फिर भी , न जाने क्यों
कोई कमी बताके यूँ
बेगाना सा करते हों ।
कुछ कमी तो सबमे रहती हैं
इन अपनो में उन् गैरों में
रिश्तों को छोङा जाता नहीं
इन्हें प्यार से पकड़े रहते है
फिर भी , कोई कमी बताके क्यों 
यु बेगाना सा करती हो |

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