:| THE STORY OF A DEAD LEAF :|
(Inspired by a song)
मै मरी पड़ी सी पड़ी रही
बस टूटी हुई मै बिखर रही
धीरे धीरे मै मिलती रही
धीरे धीरे मै ढलती रही
मिट्टी से ही मै आयी थी
मिट्टी में ही मै मिल सी गयी
एक रोज मै बैठी सोच रही
तभी आँख लगी मेरी जैसे
कलकल करती झरझर करती
ऐसे चलती बढ़ती रहती
मै समा गयी उस कलकल में
जिस कलकल से मै डरती थी
कभी निचे जाती कभी ऊपर आती
बस युही ढलती, मिलती रहती
अब सिख लिया कलकल में जीना
अब सिख लिया झरझर में पीना
एहि सोच रहा और तैर रहा
मेरी आँख लगी फिर से जैसे
दम घुटने लगा मै दबता रहा
ढेरो की मिट्टी हो जैसे। .......
जब बढ़ता है इस दाब हवा का
ना सह पाता ना रह पाता
फिर भी करता गुणगान हवा का
जो चाहत लिए मै बैठा रहा
उस चाहत का एक भाग हवा का
अब आँख मेरी बस खुल ही रही
तभी उठा पटक के धर ही दिया
मुझे लाके किनारे पटक दिया
जिस मिट्टी में कभी मिलती रही
आज शामिल हु उस मिट्टी में
जो पैदा करती इस मिट्टी को
हर बार नमन करता इस मिट्टी को
माथे तिलक लगता जिसको। .....
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