Friday, 11 March 2022

Again & Again

लाख छुपाना चाहु आ ही जाता है बहाना फिर से
देख के इतरा जाती हो ऐसे मोरनी के पंख हो जैसे
बहुत शिद्दत के बाद मिली हो फिर से
नाराज नहीं होता अब रब से 
कह लो जो कहना चाहती हो फिर से
अब ना जाऊंगा इन बादलों के जैसे ।।

बारिश गिरेगी अब फिर से 
सूखे पत्तो को सहलाती जैसे
उठो चलो अब साथ है फिर से 
पथिक को राह हो जैसे ।।

बातें करते रहते फिर से
चाँद चकोर के जैसे 
अंत तक अंतिम तक फिर से 
आत्मा यमराज के जैसे ।।।।।



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